Thursday 19 September 2019

काव्य समस्या

अब समय ही कहाँ है के कविता लिखी जाये
अब जो बात है वो बस सीधी बताई जाये 


अब तो जी वार्ता होती है कार्यालयीन
जलेबी जैसी कैसे अब बात घुमाई जाये 


अब घूम भी जाये जो बात एक बार फिरसे
सन्दर्भ सहित व्याख्या भी तब बनायी जाए 


व्याख्यान भी तो अब सीधे और क्रमिक होते हैं
नव ताल से कैसे काव्यिक धारा बहाई जाए


जलधारा सा तरंगित था जो जीवन
इस धारावाहिक से कैसे बाहर निकाली जाये  


अब समय ही कहाँ है के कविता लिखी जाये
अब जो बात है वो बस यहीं ख़तम की जाये 


----- आँखि 

Wednesday 11 January 2017

आवाजों की #जुगलबंदी

आवाजों में भी एक सफर है..
आवाजों में भी एक कहानी है..
आवाजों का भी किरदार है..
गाँव में कहीं दूर से आती हुई इंजन की आवाज
रात में आती झींगुरों की आवाज,
तेज हवा के चलने का रुआब
पत्थर के पानी में गिरने पर आती एक गहरी चीख
कुँए में अपना खुद का नाम चीख के वापस आती आवाज
पुल से रेल निकलते वक़्त बदल जाने वाली आवाज
यामाहा RX 100 के दुसरे गियर वाली आवाज
मम्मी,दादी की अलग से पहचान में आ जाने वाली पायल की आवाज
पिताजी के अखबार को झिड़क के खोलने पर आने वाली कड़क कागज़ी आवाज
स्टील के ग्लासों को कान पे लगाने पर आने वाली सांय सांय,
बहते पानी का कोलाहल,
सुबह होते ही चिड़ियों के गाने की आवाज
इंटरवल ख़त्म हो जाने पर बजने वाली घंटी की आवाज..
बड़े दिनोँ से बन्द किसी दरवाजे को खोलने पर आने वाली आवाज..
बोतल से गिलास मेँ दारू डालते वक्त आने वाली आवाज..
गली के नुक्कड़ से ही पिताजी के स्कूटर के होर्न की पहचान मेँ आ जाने वाली आवाज.
जेब मे खनखते सिक्कोँ की आवाज
कभी-कभी गीली हवाई-चप्पलोँ को पहनकर चलने पर आने वाली आवाज
स्टोर-रूम मेँ लड़ते चूहोँ की आवाज
गली के फेरी वालोँ की आवाज
खरंजोँ-गड्रडोँ पर साईकिल की घण्टी की खुद ही बजने वाली आवाज
गाय-भैँस के गले मेँ लटके घण्टी की आवाज
बरसीम काटते वक्त आने वाली आवाज
पानी आने से पहले हैण्डपम्प मेँ आने वाली एयर की आवाज
वाकई..आवाजोँ मेँ एक सफर होता है
एक कहानी होती है..
और उनके भी किरदार होते हैँ..

अनजान

Thursday 5 January 2017

जाने कौन जन्म का नाता

तुझ से जाने कौन जन्म का नाता,
बहुत सोचा मैं पर समझ न पाता।
कभी माँ बन मेरे सपनों में आवें,
और कभी बेटी बन हुक्म चलावें !
कभी बड़ी बहन बन मेरे आंसूं पोंछें,
कभी छोटी बहना की जिद के झोंके !
और कभी मेरा मकान तू घर बनावें
सांसें मेरी सब सन्दल सी महकाएं !
पर ये तो सब हैं सपनों की बातें
गुपचुप राज़ भरी अपनों की बातें !
राज़ मेरे सब तुझ पर ज़ाहिर,
मुश्किल रु-ब-रु, फिर भी हाज़िर !
सच चाहे मैं हरगिज़ न मानूं,
पर तू जाने है , यह मैं जानूँ !
आस ना कोई, फिर भी ख़ास
नेह की बारिश, नेह की प्यास !
और सच में तू जैसी है, वैसी ही रहना
फिर चाहे मत मुझे अपना कहना !
बस कभी कभी मेरे सपनों में आना
आ कर मुझे तुम अपना बताना !
-- अमर
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विपरीत मायने


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पुण्य-पाप
दिन-रात,
धूप-छांव,
सांझ-सबेरा,
काया-छाया,
आकाश-पताल,
सुख-दुःख,
मिलना-बिछड़ना,
उल्फत-नफरत,
सफ़ेद-स्याह,
सच-झूठ,
ख़ुशी-ग़म,
हँसना-रोना,
सही-ग़लत,
आबाद-बरबाद,
क़ातिल-मक़तूल,
ये सब.....ऐसे जैसे
तू और मैं !
-- अमर
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ये और वो


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ये सिसकियाँ,वो ठुकराना।  
ये हिचकियाँ,वो चले जाना।
ये आदतें, वो आहटें।
ये सदायेँ, वो अदायें।
ये वफ़ायें, वो जफ़ायें।
ये मिन्नतें, वो लानतें।
ये लुट जाना,वो लूट जाना।
ये करम , वो सितम ।
ये प्यार,वो व्यौपार।
ये मैं और वो तू  !
-अमर
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क्या कहूँ

क्या कहूँ आप से, लफ्ज़ कम पड़ जातें हैं,
बयां करे ज़ज़्बात तो नयन नम पड़ जातें हैं.
कुछ ऐसी ही किस्मत लिखा के लाया है बंदा, ऐ दोस्त
लिखें "ख़ुशी" जो तो फ़रिश्ते उसे "ग़म" पढ़ जाते हैं।
-अमर
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मैं बेचारा


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परछाइयों का मज़मा था, गुलज़ार नहीं हुआ,
मैं बदबख़्त नाशाद था, आबाद नहीं हुआ.
बेशर्मों ने नंगे हो कर बेचा ख़ुदको, चौक पे,
मेरा ख़रीदार नहीं मिला, मैं शर्मसार ही हुआ.
शाम ढले गुलज़ार हुए कोठे तो हुईं हैरानी,
मेरा तो इक घर था, वो क्यों वीरान ही हुआ.
मैंने कौन सी ऐसी बेज़ा इनायत की मांग की,
क्यों मेरी नहीं सुनी, क्यों मेरा काम नहीं हुआ.
चोट गहरी देस बेगाना, बताते भी तो किस को,
अपने ही कंधे पर रोना, कभी आसान नहीं हुआ .
हाक़िम ने मेरे हिस्से का सूरज भी पी लिया,
आबाद होने आया था मैं, बर्बाद ही हुआ .
-अमर
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